Tuesday, January 4, 2011

एक NRI का दर्द

आज कलम चलने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया
दिल का दर्द आँखों से छलक रहा है
वो उसे ख़ुशी के आंसू समझ रहे हैं
मेरी ख़ामोशी को कोई समझ न पाया
क्योकि परिवार का प्यार कुवैती दीनार हो गया।
ये कैसा कलयुगी वनवास मिला है
अपने ही देश का NRI हो गया
इसलिए आज कलम चलने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया।

दिल रोता है जब भी याद आता है
वो गणेश महोत्सव में झूमना हमारा
वो गरबों की धुन पर थिरकना हमारा
होली के रंग मई रंगना हमारा
वो दीयों की रौशनी में मिलना हमारा
ये कैसा कलयुगी वनवास मिला है
अपने ही देश का NRI हो गया
इसलिए आज कलम चलने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया।

दिल का दर्द कलम से उगलता हु
वो समजते है शायर बन रहा हु
आज उस मोड़ पर आ गया हु
मैं उन्हें नहीं, वो मुझे खो रहे है
इसलिए आज कलम चलाने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया।

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