Thursday, January 6, 2011

सच्चाई या हमारा दुर्भाग्य

मैं एक प्रतिशत भी राजनीती को पसंद नहीं करता और ना ही मुझे उसमे कोई दिलचस्पी है। पर कभी कभी हालत ऐसे होते है कि मैं अपनी भावनाओ को दबा नहीं पाता।
आज देश का गृह मंत्री एक गैर जरुरी भाषण देता है कि हमारी सुरक्षा भाग्य भरोसे है। मुझे समाज में नहीं आया कि क्या साबित करना चाहते है वो? यही कि हम कमजोर है या फिर देश को कहना चाहते है जागते रहो।हमारे भरोसे मत रहो। हम लोग सिर्फ संसद में लड़ झगड़ सकते है हकीकत से हम मिलों दूर है। उन्होंने सच्चाई स्वीकार कर एक नेक काम किया है या अपने आपको हताश साबित ये मुझे समझ में नहीं आ रहा है।
क्या देश के गृह मंत्री को ऐसा गैर जरुरी भाषण देना जरुरी है? अगर हमारी सुरक्षा व्यवस्था भाग्य भरोसे है तो आप इतने दिनों तक कहा सोये हुए थे? क्या फिर से इंतजार है कि कोई कसाब आये फिर से और १ अरब आबादी दर के साए में जिए? क्या यही राजनीती है कि जनता को डरा कर रखो और सत्ता में बने रहो?
२६/११/२००८ एक गृह मंत्री खुले आम टीवी पर अपने प्लान्स बताता है कि कैसे आतंकियों का मुकाबला करेंगे। और फिर एक गृहमंत्री ये कहकर सबको चोका देता है कि ये हमारा सौभाग्य है कि आतंकी हमले नहीं हो रहे है। कसूर इनका नहीं है कसूर हमारा है जो हमने संसद में बूढों की फ़ौज जमा कर दी। मुर्दों का जमावड़ा हमने लगाया है। क्योकि हमे इन सबसे कोई मतलब नहीं है। जिस दिन हम लोग जागना शुरू होगे उस दिन शायद कोई ऐसा ना कह पाए या कर पाए। और उस दिन का इंतज़ार रहेगा की हम सब इस चिर निंद्रा से जगे और अपने हक, अधिकार, देश और उसकी संपत्ति के लिए लड़ना शुरू करे।





NAIEM...

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