Thursday, January 20, 2011

कलयुग का श्रवण

यह मार्मिक आलेख मुझे हमारे कबाड़ी फ़ोटूकार रोहित उमराव ने भेजा है. फ़ोटो भी
जाहिर है उन्ही की है.


पीले
वस्त्र गले में रामनामी गमछा मस्तक में सुशोभित रोली नंगे पांव कड़ाके की ठंड में वह
आगे बढ़ता जा रहा था. उसे पैरों में गड़ने वाले कंकड़ और कांटों की चुभन की परवाह नहीं
थी. उसे एक लम्बी पथ यात्रा में अपनी मां कमला देवी और स्वर्गीय पिता जगदीश वर्मा
की अस्थियों को अपने कन्धे पर धरी कांवर में दोनों ओर लटकाए. हरिद्वार, गोला और
नीमसार की तीर्थ यात्रा करने. तय करनी है कोसों की दुरी लग सकते दिन महीने और साल
भी. जी हां ये कोई कहानी नहीं मातृपितृ भक्त श्रवणकुमार की तरह इक्कीसवर्षीय की
मानी प्रतिज्ञा का जीता जागता उदाहरण है जो अभी कुछ दिन पहले बरेली में देखने को
मिला. उसके साथ इस यात्रा में उसकी पत्नी भी है.

सीतापुर जिले के परसेंडी
चांदपुर का रहनेवाला वीरेन्द्र आज की चकाचौंधभरी ज़िन्दगी से एकदम अलग है. अपने पिता
की तीन सन्तानों में वीरेन्द्र सबसे छोटा है. दो बड़ी बहनों का विवाह करने के बाद
पिता स्वर्ग सिधार गए. घर की माली हालत भी एकदम ठीक नहीं है. कक्षा आठ तक की पढ़ाई
करने के बाद अपने पिता का हाथ बंटाने को लखनऊ के राष्ट्रीय स्वरूप कोल्ड स्टोर में
कच्चे केलों को पकाने का काम करने लगा. दो ढाई सौ रुपये रोज़ मिल जाते थे. पर मन में
मां को लिए अपने हाथों से पिता की अस्थियों को हरिद्वार की गंगा मैया में विसर्जित
करने की इच्छा बनी रही. गोला और नीमसार के दर्शन भी कराने थे अपनी मां
को.

वह निकल पड़ा नवरात्रि के बाद ही उस कठिन यात्रा के लिए जिसे वह हर हाल
में पूरा करने को वचनबद्ध है. वीरेन्द्र की इस अगाध निष्ठा के सामने उसकी पत्नी
प्रीति तथा उसकी बड़ी बहन-बहनोई (सुनीता और वेदप्रकाश) अपने तीन साल के बेटे, एक
ठेलीवान के साथ दानापानी लिए सेवक के रूप में निकल पड़े हैं. लगभग पांच किलोमीटर
प्रतिदिन की यात्रा करने के बाद ये सारे किसी मन्दिर या सड़क के किनारे को अपना
ठिकाना बनाकर तम्बू लगा लेते हैं पूछने पर उसने कहा कितने दिन, महीने या साल लग
जाएं पर मां को तीर्थ यात्रा करा कर ही सांस लूंगा.


NAIEM...

Monday, January 17, 2011

महँगाई की मार, निशाने पर सरकार

खाद्य पदार्थों एवं पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि को लेकर भाजपा और माकपा ने केंद्र की संप्रग सरकार की कड़ी आलोचना। इन विपक्षी दलों ने सरकार पर महँगाई पर काबू न कर पाने का आरोप भी लगाया।

भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि जब विश्व में मूल्य स्थिर चल रहे हैं और अनेक हिस्सों में तो खाद्यान्न की कीमतें तो वास्तव में गिर रही है, तब संप्रग सरकार की ठोस नीति के अभाव के चलते भारत भयंकर महँगाई के दौर से गुजर रहा है।

उन्होंने कहा कि एक महीने में कीमतों में वृद्धि का ‘दोहरा डोज’ पूरी तरह अनुचित है और यह और कुछ नहीं बल्कि सरकार द्वारा आम आदमी की ‘लूट’ है।

संप्रग सरकार पर निशना साधते हुए जावड़ेकर ने कहा कि लोग जब सामान्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से बढ़ी महँगाई से जूझ रहे हैं तब सरकार को इसका निदान करना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा करने की बजाय पेट्रोल के दाम दो बार बढ़ा दिए।

उन्होंने कहा कि नियंत्रण मुक्त होने के नाम पर वास्तव में तेल कंपनियों का समूह सरकार के संरक्षण में कीमतों में बढ़ोतरी कर रहा है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि महँगाई से निपटने के मामले में उसमें दृष्टि और इच्छाशक्ति का अभाव है।

उधर, माकपा महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि सरकार चीनी, खाद्य पदार्थ, पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों पर क्या कर रही है। इस पर काबू करना सरकार की जिम्मेदारी है। अब सवाल यह है कि सरकार महँगाई रोकने में सक्षम है अथवा नहीं।

ममता बनर्जी भी नाराज : तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने बिना सलाह किए पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने के लिए केंद्र को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उनकी पार्टी इसके खिलाफ राज्य में ब्लॉक स्तर पर प्रदर्शन करेगी।

ममता ने कहा कि हम केंद्र में गठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन इसके बावजूद हमें पेट्रोल की कीमतें बढ़ाए जाने के बारे में जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि कीमतें बढ़ने से आम जनता बहुत मुश्किल में आ गई है। 

Wednesday, January 12, 2011

प्रकृति के रंग ,बाज़ारों की रौनक और होली




वसुंधरा बचाओ ,पर्यावरण बचाओ , पानी बचाओ , पेड़ बचाओ ,बाघ बचाओ, गिद्ध बचाओ! सब बच जायेगा जब हम सजग रहेंगे....................
धीरे-धीरे जाने अनजाने कितनी ही चीज़े हमारी आँखों के सामने से विलुप्त होती जा रही है पर हम बेफिक्र होकर अपनी जीविका के लिए संघर्ष कर रहे है। समाज और मीडिया के कुछ लोग इसको लेकर रोज़ कुछ न कुछ जनांदोलन करते रहते है पर लोग इस पर ज्यादा ध्यान नही देते क्योकि उनके पास टाइम नही होता है । वैसे भी आजकल के लोगो की मेमोरी भी 'गजनी' वाले आमिर खान की तरह हो गयी है जो १५ मिनट बाद सब भूल जाते है। पर लोगो की भूख बढ़ गयी है नदी , कुआ ,तालाब, झील ,जंगल सब खाते जा रहे है फिर भी चैन नही मिल रहा है। हमारी बढ़ी भूख को शांत करने के लिए सारे आनाजों के बीज शंकर(डंकल) में आ गए है, देसी बीजों का अस्तित्व ख़त्म हो गया है,या फिर संग्रालय में संरक्षित कर दिया गया है क्योकि देसी बीज भी विलुप्त हो रहे है। इसमें कोई चिंता का विषय थोड़े न है ये तो हमारी उन्नति के लक्षण है कि अब हम भी विकसित देशों कि श्रेणी में आ रहे है। जितना हम प्रकृति से दूर जायेंगे उतना हम भौतिकता की दौड़ में आगे बढ़ते जायेगे तभी तो विनाशगाथा की कहानी में चरमोत्कर्ष आएगा। उद्भव और सृजन का सुन्दर स्वरुप हमने समझा नही तभी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे है।
बाजारीकरण का कीड़ा सबकी नसों में घुस चुका है। हमने अपनी भावनाओ ,संवेदनाओ, अनुभूतियों को स्वार्थ की गहरी नदी में फेंक दिया है। अरे ! हम कहते है कि अगर हर व्यक्ति एक पीपल ,बरगद ,पाकर या नीम का पेड़ लगा दे तो उसका क्या कम हो जायेगा। अपना परिवार तो हर इंसान बढ़ाना चाहता है पर धरा की सूनी गोद किसी को नही दिखाई देती है।
बाज़ारों की रौनक देख कर लगता है कि होली आ गयी है ,हर तरफ रंग ही रंग बिखरे है । पर कहीं से कोई बसंत की बयार नही बह रही है, किसी पेड़ की नयी कोपलें मुस्कुराती होली की बधाई नही दे रही है, कहीं पर चिड़ियों का झुण्ड गीत नही गा रहा है, कोई कौआ छत पर पापड़ नही चुरा रहा है, आम के बरौनी की भीनी खुशबू किसी ने शायद ही महसूस की होगी। हर त्यौहार की आहट बाज़ारों की रौनक से पता चलती है न कि प्रकृति के बदलाव ,सुन्दरता ,और स्वरुप से। प्रकृति को कितना पीछे छोड़ दिया है हमने कि ज़िन्दगी के मायने बदल गए।

उल्लास प्रीत और सद्भावना का त्यौहार हम प्रकृति के साथ क्यों नही मानते ? हम अपनी होली अपने तक ही मानते है धरती माँ के साथ , जानवरों के साथ,पेड़ों के साथ ,पक्षीयों के साथ क्यों नही मानते। कभी किसी पेड़ को गुलाल का टीका लगाया है अपने। किसी जानवर को घर बुला कर गुझिया ,पापड़ खिलाये है आपने। शायद बहुतों ने ऐसा किया होगा या हमेशा करते रहते होंगे। पर जिसने नही किया अगर वो करके देखे तो सच्चे मायनों में आपको त्यौहार मनाने की ख़ुशी मिलेगी।


चलो इस होली एक पेड़ लगाये, प्रकृति से जुड़े, कुछ सार्थक करे जिससे मन को सुकून मिले!

प्रकृति से जुडो होली है!!!!!!!

FRIDAY, FEBRUARY 19, 2010

दुनिया बताती है हमे कि क्या है हम......

अपना ग़म दिल में छुपा लिया तो दुनिया ने सोचा खुश हैं हम

सांसों की माला को पिरोया तो दुनिया कहती है जिंदादिल है हम,

वक्त ने थमा है हमे तो दुनिया समझी कि बड़े सधे है हम,

अपनों ने ठेस दी तो ग़म नही किया तो दुनिया ने जाना कि बड़े दिलवाले है हम,

वक़्त के थपेड़ों ने हिम्मत दी तो दुनिया ने सोचा कि साहसी है हम,

मुंह कर पट्टी बांध ली हमने तो दुनिया कहती कि बड़े शांत है हम ,

अपने स्वार्थवश कुछ अच्छा किया तो दुनिया समझी कि त्यागी है हम,

थोड़ी सी ऊंचाई पा गये किस्मत से तो दुनिया ने कहा बड़े मेहनती है हम,

जीवन और पवित्रता का मिलन हुआ तो दुनिया कहती है कि योगी है हम,

एक दिन जब सारे मुखौटे उतारे तो दुनिया कहती है पागल है हम....


NAIEM...

Tuesday, January 11, 2011

युवा भारत के युवा बच्चे




नन्हा मुन्ना रही हूँ देश का सिपाही हूँ, बोलो मेरे संग

जय हिंद
जय हिंद!


कल गणतंत्र दिवस है हर बच्चा कल का सिपाही है...कल देश के हर कोने में बच्चे गणतंत्र दिवस परेड में अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। बहादुर बच्चो को कल प्रधानमंत्री जी सम्मानित करेंगे। २२ सदी के बच्चो में अपार सम्भावनाये है। बच्चो ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है जैसे मीडिया, फिल्म, कला , विज्ञानं , संस्कृति, पर्यावरण , योग आदि में बराबर योगदान दे रहे ही ।

पर न जाने क्यों मन में एक चुभन सी होती ही बच्चो, युवाओ को लेकर, उनके व्यवहार, उनके तौर- तरीको से कुछ परेशानी होती हैं । हमको सोचना चाहिए युवा भारत की छवि किस दिशा में जा रही हैं ।

हम आप हर जगह यही पढ़ते , सुनते, मूवी देखते बस यही सीखते रहते है की 'बच्चो को समझो,उनकी भावनाओ को जानो, उनको वो सब करने दो जो वो चाहते है , बच्चो को इतनी छूट देनी चाहिए की अपना भविष्य खुद बना सके, और न जाने क्या क्या। आमिर खान साहब ने तो इस विषय पर जैसे p.hd कर डाली हो। उनकी हर फिल्म में कुछ न कुछ हम सिख ही लेते है कभी चाहते हुए कभी ना चाहते हुए। पर दुनिया अब पहले जैसी नहीं रह गयी है और ना हम, ना हमारे बच्चे , न युवा । अच्छा नही लगता ना ये सब पढ़ते हुए तो याद कीजिये अपना बचपन और आज अपने बच्चे के बचपन को। कितना फर्क नज़र आएगा वो आप ही महसूस करेंगे। पहले हम बच्चे माँ के दामन को २० -२५ साल तक पकडे रहते, क्या करना है क्या नही सब पूछते अगर कोई मेहमान घर आते तो घंटो उनके सामने नही जाते मारे शरम के । माँ बुलाती रहती की बेटा प्रणाम ही कर लो तो बड़ी मुन्व्वत के बाद मिलने आते । आज कल के बच्चे को देखो कितने स्मार्ट होते है उनको कुछ बताना या सिखाना नही पड़ता हर समय presentable और इतने समझदार होते है कि लगता है हर बच्चा 'अभिमनुय' हो। हर बच्चा लगता है over active , समय से पहले बड़े हो रहे है। हम तो कभी कभी सोचते है कि सन २००० के बाद के बच्चो को किसने बनाया है शायद भगवान् ने नए constructor अप्पोइंत किये है है। हर जगह बच्चे अपना कमाल दिखा रहे है । ज़रूरत से ज्यादा समझदार, समय से तेज़ , आकाश से खुली सोच , हर तरह के कामो में निपुण, सब कुछ उम्मीद से ज्यादा करते है आज के बच्चे । बड़ा अच्छा लगता है की हमारे बच्चे हमसे कितना आगे है । इन सब के प्रमुख कारण - आस पास का परिवेश, (Environment), शिक्षा (Education), अभियांत्रकी (Technology)। हमारे बच्चे अभूतपूर्व है।
सब कुछ अच्छा है पर कुछ कहीं बहुत धीरे धीरे बदल रहा है । कुछ अप्रिय तथ्य भी जुड़े है इससे - जैसे
*हम मानते है की बच्चे भगवान् का रूप, मासूम , निश्छल होते है , पर आज कल के बच्चे आपको पलक छपकते ही बेवकूफ बना देते है। खुद ही महसूस किया होगा अपने इस बात को।

*अपनी बात मनवाने के लिए बड़ी आसानी से झूठ बोलते है की आप समझ नही पाएंगे की वास्तव में एक बच्चा बोल सकता है .
*एक्टिंग बड़े अच्छे से करते हैं ।
*आप अपने आस पास युवा लड़के -लडकियों को बस नोटिस कीजिये आप समझ जायेंगे हम क्या कहना चाहते हैं ।
हमको अभी से इन सब छोटी छोटी बातो का ख्याल रखना पडेगा । इस समय हमारा देश और युवा बड़े परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। इस परिवर्तन के दौर को सकारात्मक दिशा देना अति आवश्यक हैं।


आज के बच्चो और युवाओ को सिर्फ सुरक्षा , भरोसा , आत्मविश्वास , और प्यार की ज़रूरत ही जो उनको अच्छा भारतीय बनाने से पहले अच्छा इंसान बनायेंगे।




NAIEM...

Saturday, January 8, 2011

हमारा मीडिया

हमारा मीडिया।
कहने को तो काफी शक्तिशाली पर वो कहते है ना कि जब आपके पास पॉवर आती है तो ये हर किसी के बस की बात नहीं होती की उसको सही जगह पर उपयोग करे। जैसा रावण के पास पॉवर थी पर उसने उसका गलत उपयोग किया। वैसा ही हमारा मीडिया है। चाहता तो मीडिया हनुमान बन सकता था पर खुद मीडिया ने चुना है अपना रास्ता रावण बनाने का।
मिर्च मसाला, गोस्सिप, सबसे तेज़ खबर, टॉप पर बने रहने के स्केंडल का तड़का यही कुछ रह गया है मीडिया के पास। यही मीडिया चाहे तो देश में युवाओ के बिच जागरूकता फैला कर उन्हें आगे ला सकती है। पर ऐसा हुआ तो शायद उनकी टी आर पी कम हो जाएगी। आज हमारे पास बिग्ग बॉस, सच का सामना, राज़ पिछले जनम का, सांस-बहु देखने कि फुर्सत ही फुर्सत है। पर अगर कही डॉक्युमेंट्री आ रही हो हमारी आजादी के बारे में या फिर देश में फैले भ्रष्टाचार के बारे में, या किन्ही भूले बिसरे देशभक्तों के बारे में तो हमे फुर्सत नहीं है इन सबके लिए।
ये हमही लोग है जिन्होंने मीडिया को ये सब दिखाने के लिए मजबूर कर दिया है। ये हमारी ही आदत है कि जब वो लोग किसी खबर को ज्यादा मिर्च मसाला लगा कर नहीं बताते तो हमारे हाथ रिमोट अपने आप चलने लगते है और हम लोग ढूंढने लगते है कही कोई मसाला मिल जाये। हम न्यूज़ देखते है सिर्फ इसलिए कि हमे आमिर, शाहरुख़, सलमान, कटरीना, अमिताभ, ऐश्वर्या कि व्यक्तिगत ज़िन्दगी का ब्यौरा मिल जाये। शायद हमे इतनी फुर्सत नहीं है कि हम लोग देश के बारे में सोचे। शायद हम लोगो कि ही जरूरते मीडिया पूरी कर रहा है। क्योकि जो दिखता है वो बिकता है। हम लोग मार्केटिंग और कॉम्पिटिशन के दौर में जी रहे है। हमें शायद ये जानना जरुरी है कि टाइगर वूड्स कि लाइफ में क्या चल रहा है और कितनी लडकियों के साथ उनकी रास लीला दिखयी जाती है।
शायद वक़्त है कि हम जगे इस चिर निंद्रा से और आवाज बुलंद करे अपनी। शायद वक़्त है आन्दोलन का और जनता और युवा को अपनी ताकत का नजारा सरकार और मीडिया को दिखाने का।
जय हिंद। वन्दे मातरम्





NAIEM....

Thursday, January 6, 2011

सच्चाई या हमारा दुर्भाग्य

मैं एक प्रतिशत भी राजनीती को पसंद नहीं करता और ना ही मुझे उसमे कोई दिलचस्पी है। पर कभी कभी हालत ऐसे होते है कि मैं अपनी भावनाओ को दबा नहीं पाता।
आज देश का गृह मंत्री एक गैर जरुरी भाषण देता है कि हमारी सुरक्षा भाग्य भरोसे है। मुझे समाज में नहीं आया कि क्या साबित करना चाहते है वो? यही कि हम कमजोर है या फिर देश को कहना चाहते है जागते रहो।हमारे भरोसे मत रहो। हम लोग सिर्फ संसद में लड़ झगड़ सकते है हकीकत से हम मिलों दूर है। उन्होंने सच्चाई स्वीकार कर एक नेक काम किया है या अपने आपको हताश साबित ये मुझे समझ में नहीं आ रहा है।
क्या देश के गृह मंत्री को ऐसा गैर जरुरी भाषण देना जरुरी है? अगर हमारी सुरक्षा व्यवस्था भाग्य भरोसे है तो आप इतने दिनों तक कहा सोये हुए थे? क्या फिर से इंतजार है कि कोई कसाब आये फिर से और १ अरब आबादी दर के साए में जिए? क्या यही राजनीती है कि जनता को डरा कर रखो और सत्ता में बने रहो?
२६/११/२००८ एक गृह मंत्री खुले आम टीवी पर अपने प्लान्स बताता है कि कैसे आतंकियों का मुकाबला करेंगे। और फिर एक गृहमंत्री ये कहकर सबको चोका देता है कि ये हमारा सौभाग्य है कि आतंकी हमले नहीं हो रहे है। कसूर इनका नहीं है कसूर हमारा है जो हमने संसद में बूढों की फ़ौज जमा कर दी। मुर्दों का जमावड़ा हमने लगाया है। क्योकि हमे इन सबसे कोई मतलब नहीं है। जिस दिन हम लोग जागना शुरू होगे उस दिन शायद कोई ऐसा ना कह पाए या कर पाए। और उस दिन का इंतज़ार रहेगा की हम सब इस चिर निंद्रा से जगे और अपने हक, अधिकार, देश और उसकी संपत्ति के लिए लड़ना शुरू करे।





NAIEM...

Tuesday, January 4, 2011

एक NRI का दर्द

आज कलम चलने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया
दिल का दर्द आँखों से छलक रहा है
वो उसे ख़ुशी के आंसू समझ रहे हैं
मेरी ख़ामोशी को कोई समझ न पाया
क्योकि परिवार का प्यार कुवैती दीनार हो गया।
ये कैसा कलयुगी वनवास मिला है
अपने ही देश का NRI हो गया
इसलिए आज कलम चलने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया।

दिल रोता है जब भी याद आता है
वो गणेश महोत्सव में झूमना हमारा
वो गरबों की धुन पर थिरकना हमारा
होली के रंग मई रंगना हमारा
वो दीयों की रौशनी में मिलना हमारा
ये कैसा कलयुगी वनवास मिला है
अपने ही देश का NRI हो गया
इसलिए आज कलम चलने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया।

दिल का दर्द कलम से उगलता हु
वो समजते है शायर बन रहा हु
आज उस मोड़ पर आ गया हु
मैं उन्हें नहीं, वो मुझे खो रहे है
इसलिए आज कलम चलाने को मजबूर हो गया
क्योकि अपना ही देश परदेस हो गया।

Sunday, January 2, 2011

क्या हम काबिल है महाशक्ति कहलाने के

आज सुबह सुबह अपने मेल बॉक्स में एक ईमेल पढ़ा, जिसमे स्वतंत्र कश्मीर की मांग कर रहे कुछ लोग भारतीय झंडे को जला रहे थे। उसमे कुछ तस्वीर भी दी हुई थी। मुझे सिर्फ थोडा आश्चर्य हुआ की जिन लोगो ने ये तस्वीर ली, वो लोग क्या कर रहे थे उस वक़्त? सिर्फ तमाशा देख रहे थे??
क्या सच में हम महाशक्ति कहलाने के लायक हो गए है??? हमारे अखंड भारत होने के दावे कहाँ तक सही है???
सर से लेकर पाँव तक हम लोग झुलसे हुए हैं और कहते है की हम महाशक्ति हैं, तो ये कहा तक सच है?? कहाँ तक हम अपने आपको धोखा देते रहेंगे?
कभी कश्मीर को लेकर, कभी नक्सलवाद को लेकर, कभी लिट्टे को लेकर, कभी मराठा को लेकर, कभी गुजरात को लेकर, कभी आसाम को लेकर, कभी हिमाचल को लेकर, कभी अयोध्या को लेकर, कभी खालिस्तान को लेकर , कभी UP - बिहार को लेकर। बाकि क्या बचा???
क्या अभी भी हमारा अखंड भारत होने का दावा सही है?
बटें हुए है हम लोग। भाषा के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर, धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, और बचा खुचा हमारे नेताओ ने मिलकर बाँट दिया।
हम लोग किसी बात का खड़े होकर तमाशा देख सकते हैं, पर हम लोगो में अन्याय का सामना करने की हिम्मत नहीं है। कुछ भी हो जाये हमे क्या?
क्या परमाणु शक्ति संपन्न होना हमारे महाशक्ति होने का प्रमाण है? हमारी हालत ऐसी है जैसे बहुत बड़े से घर में रहने वाले लोग एक दुसरे से नफरत करते हो। दिखावे के लिए हम एक घर में रहते है पर हम लोगो में आपसी समझ नहीं है और ना ही हम एक दुसरे को पसंद करते है।
अब समझ में आने लगा है कि क्यों हम लोगो ने १२०० साल गुलामी करके गुजारे। शायद उस मानसिकता से हम निकल नहीं पाए है आज तक और ना ही हम इतने दृढ निश्चयी है कि उससे निकल पाए। 
कोई राष्ट्र ध्वज का अपमान करेगा तो हम लोग उसकी तस्वीर लेकर अख़बारों और टीवी पर दिखा कर वाह वाही लुट सकते है पर हम लोग किसी को ये गलती करने पर रोक नहीं सकते। हम दुसरो को गलत साबित करने कि होड़ में शामिल हो सकते है पर हम अपनी गलतियों को सुधर नहीं सकते। हम दुसरे के घर में लगी आग का तमाशा देख सकते है, पर अपने घर में लगी आग बुझा नहीं सकते। 
शायद इसी का नाम है हिन्दुस्तानी होना। मुझे अपने स्कूल के दिनों का श्लोक याद आ रहा है ki - 






Saturday, January 1, 2011

युवा भारत

पहले तो सभी को नव वर्ष की शुभकामनाये।
पिछले ३ महीनो में मुझे लगभग ३०० युवाओ का साक्षात्कार करने का मौका मिला। और किस्मत की बात की सभी अभ्यर्थी भारतीय थे। और आयु लगभग २३-३० के बिच। वैसे में भी इसी ग्रुप में आता हु। वास्तव में मुझे अपने लिए एक सहायक की जरुरत थी। जो कि मेरे काम में मेरा हाथ बंटा सके। यकिन मानिये कि ३०० में से एक भी बंद ऐसा नहीं मिला जो कि अपनी मेहनत के दम पर आगे बढ़ने का हौसला रखता हो। सभी अपने नसीब को हथियार बनाकर आ गए थे.किसी में वो दम वो हौसला नहीं कि हाँ मुझे ये पता है और मैं ये कर सकता हूँ। तब मुझे लगने लगा कि शायद मैं गलत युग में पैदा हो गया हूँ, और मुझे अपने भाई पर तरस आने लगा जिसको में हमेशा डांटता रहता हूँ कि मेहनत नहीं करता है, काम ढंग से नहीं करता है। ये शायद उसका नहीं इस पीढ़ी का कसूर है जो इतनी अलसाई हुई है। हर कोई पैसा कमाना चाहता है पर उसके लिए वो शोर्ट कट के चक्कर में लगे हुए है।
कुछ तो ऐसा है जो सही नहीं चल रहा। शायद हमारी व्यवस्था, हमारी परवरिश, हमारे संस्कार। कही न कही मुझे ऐसा लगा कि ये सब बीते दिनों की बाते है। कौन जिम्मेदार है इसके लिए?
आज जब छोटा बच्चा कोई गलती करके बताता है कि उससे गलती हो गयी तो हममे से अधिकतर लोग उसको डांटते है और कही कही तो शायद पिटाई भी हो जाती है। शायद वो फिर कभी गलती करके सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। बचपन में बच्चे स्कूल में होते है तो अध्यापक बोलते है कि अभी करलो मेहनत फिर बाद में आराम ही आराम है। कहाँ है आराम? फिर बच्चा स्कूल में कुछ पढता है और घर पर या बाहरी दुनिया में उसे कुछ और ही मिलता है तो सोचता है कि ये सब पढना लिखना शायद पास होने के लिए ही है या शायद ज़िन्दगी की दौड़ में आगे बढ़ने के लिए ही है।व्यावहारिक जीवन में इसका कोई महत्व नहीं है। नैतिक शिक्षा पढाई जाती थी मुझे प्राईमरी स्कूल में। कुछ बाते ऐसी थी जिन्हें में कभी न भुला पाउँगा। पर मैंने आज तक कोई भी ऐसा बंदा नहीं देखा जिसने मेरी पढ़ी हुई बातो का व्यावहारिक जीवन में उपयोग किया हो। और किसी ने किया है तो लोगो ने उसे संत महात्मा मानकर पूजना शुरू कर दिया है। या फिर उसका मजाक बनाकर रख दिया है।
शायद यही सिखाया जाता है शुरू से ही हमे कि दुसरो से आगे बढ़ो। चाहे किसी भी तरीके से बढ़ो पर हमेशा पहला स्थान तुम्हारा होना चाहिए। तभी ये दुनिया तुम्हे पूछेगी। मैं कोई अपवाद नहीं हूँ। मैं भी शामिल हूँ इस दौड़ में। मुझे भी कही ना कही अव्वल रहना अच्छा लगता है। पर में किसी को ये नहीं कहता कि तुम्हे अव्वल रहना है। ज्यादा पैसा कमाना या इकठ्ठा करना ये नहीं दर्शाता कि आप कितने अच्छे इंसान है। पर शायद आज अच्छा इंसान होना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। शायद आज स्वामी विवेकानंद जैसे लोगो कि जरुरत नहीं है दुनिया को। उन्हें शायद मुकेश अम्बानी चाहिए। उन्हें इस चीज से मतलब नहीं है कि आपके विचार कितने शुद्ध है, उन्हें शायद आपके पास कितना बैंक बैलेंस है इस चीज से मतलब है।
देश में आज ४०,००,००,००० युवा है जिनको पॉवर हाउस कह सकते है, पर वो शायद सिक्को कि चमक में रौशनी करने में लगे हुए है, अँधेरे में नहीं। पता नहीं कब वो दिन आएगा जब भारत फिर से जगद्गुरु कहलायेगा।





NAIEM..