
आज
से ठीक एक सौ इक्कीस साल पहले यानी ३० जनवरी १८८९ को ’कामायनी’ जैसी कालजयी रचना
करने वाले महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म हुआ था.
सो इस अवसर पर पढ़िये उनकी
एक कविता जो स्कूल के ज़माने में मैंने अपनी डायरी में लिख रखी थी:
तुम
कनक किरन के अंतराल में
लुक छिप कर चलते हो क्यों?
नत मस्तक गवर् वहन
करते
यौवन के घन रस कन झरते
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
मौन बने रहते हो
क्यो?
अधरों के मधुर कगारों में
कल कल ध्वनि की गुंजारों में
मधु
सरिता सी यह हंसी तरल
अपनी पीते रहते हो क्यों?
बेला विभ्रम की बीत
चली
रजनीगंधा की कली खिली
अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल
कलित हो यों छिपते
हो क्यों?
NAIEM.....
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