आजादी के बाद भारत ने बहुत तेजी से विकास किया है। आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी रूप से जो विकास दर भारत ने हासिल किया है वो किसी को भी हैरत में डाल सकता है। बावजूद इसके ये भी एक सच्चाई है कि भारत में केवल आठ राज्यों में ही गरीबों की संख्या अफ्रीका के २६ गरीब देशों की आबादी से भी ज्यादा है। है ना ये आंकड़े चौकाने वाले। विकास का दावा
करने वाले हर भारतीय के लिये ये शर्म की बात हो सकती है कि इतना विकास करने के बावजूद गरीबी मिटाने के मामले में भारत आज भी पिछे है। गरीबी का ये आंकड़ा निश्चित तौर पर भारत की दयनीय स्थिति को दर्शाता है। लेकिन गरीबी सिर्फ भारत की चिंता नहीं हो सकती। ये पूरे एशिया महाद्वीप के लिए गंभीर चिंता का विषय है। लगभग आधी आबादी को ठीक से भोजन नसीब नहीं हो रहा। रहन-सहन का स्तर आज भी नीचे है। सरकार के पास इतने पैसे नहीं है कि वो अपने नागरिकों की लाइफ स्टाइल को सुधारने के लिए उनपर खर्च कर सके। एक अच्छी खासी आबादी बीमारी के चलते काल के मुंह में समा जाती है। उन्हें उचित इलाज सुलभ नहीं हो पाता। दूरस्थ इलाकों में बिजली, पानी और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएं आज भी नदारद हैं। ऐसे में आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भारत विकास के पथ पर तेजी से दौड़ रहा है। हां विकास हो रहा है लेकिन ये विकास शहरों तक ही सीमित है। गांव आज भी विकास की रोशनी से दूर हैं। जबकि ये सच्चाई है कि भारत की ज्यादातर आबादी गांवों में बसती है। भारत गांवों का देश है और यही वजह है कि जब विकास की बात आती है तो गांवों के आंकड़े भारत के सारे दावों की पोल खोल देते हैं। सिर्फ शहरी विकास के नाम पर भारत तरक्की की बात नहीं कर सकता। गरीबी के खेल में बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा और राजस्थान सबसे आगे हैं। इन्होंने गरीबी मिटाने में जो लापरवाही बरती है उसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ रहा है। इन राज्यों की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति ने विकास की चौपट करने में अहम भूमिका निभाई है। कोई इंसान कितना गरीब है यह उसके निजी आय के साथ इस बात पर भी निर्भर करता है कि सरकार ने उसके आसपास सुविधाओं को लेकर क्या इंतजाम किए हैं और आय के कितने साधन उपलब्ध करवाए हैं। भारत के इन आठ राज्यों पर नजर डाली जाए तो एक बात तो साफ है कि सरकार विकास को लेकर जिस तरह से उदासीन रही है उससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भूख और बेकारी को लेकर नजरिया कुछ और ही है। सरकार की नजर में गरीबी कोई गंभीर चिंतनीय विषय नहीं है। एजुकेशन, स्वास्थ्य, आवास, पोषण, संसाधन और बुनियादी सुविधाएं सेकेंडरी चीजें हैं। जिंदगी जीने का जो ट्रेंड इन राज्यों में पहले से चला आ रहा है उसमें सुधार की कोई जरूरत सरकार को नजर नहीं आती। वैसे देखा जाए तो साउथ एशिया में ५१ फीसदी लोग गरीब हैं, जबकि २८ फीसदी लोग अफ्रीका में गरीब हैं। इन आंकड़ों की बाजीगरी पर नजर डाले तो एक बात तो साफ है कि भारत में गरीबी की जो तस्वीर है वो उतनी भयानक नहीं है। हां भूख जरूर है, बच्चों में कुपोषण का आंकड़ा करीब पचास फीसदी है। इस पर कैसे काबू पाया जा सकता है ये बहुत बड़ी समस्या है। इसका समाधान खोजा जाना चाहिए। भारत आर्थिक तौर पर बहुत तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन भूख को मिटाने में कितना कामयाब हो पाया है इस पर तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दो सालों में साउथ एशिया में भूख को कम करने में कोई सफलता नहीं मिली है। भारत में आज भी भूख से मौतें हो रही हैं। कुपोषण की समस्या बनी हुई है। ऐेसे में ये बहुत बड़ा सवाल है कि आर्थिक विकास और गरीबी में क्या रिश्ता है। बात वहीं आकर रुकती है कि आखिर आर्थिक विकास हो रहा है तो कहां हो रहा है। जाहिर सी बात है ये बात शहरों से निकली है और शहरों में ही जाकर खत्म हो जाती है। चाहे एजुकेशन हो, हेल्थ हो या फिर रोजगार के अवसर, सारी सुविधाएं सिर्फ और सिर्फ शहरों में ही विकसित हो रही हैं। अब ये सारी सुविधाएं कब तक गांवों में पहुंचेंगी, फिलहाल ये कोई नहीं जानता, सरकार भी नहीं.....
NAIEM

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