Monday, December 27, 2010

घमुलि दीदी यथ-यथ आ यानी सर्दियों के लिए बच्चों के वास्ते एक कोरस



आजकल
कड़ाके की सर्दी पड़ रही है समूचे उत्तर भारत में. जाहिर है आमतौर पर बातचीत में और
टेलीफ़ोन पर भी लगातार सर्दी के इस रूप को लेकर भी सभी से बातें हो रही हैं.


अभी एकाध दिन पहले पिथौरागढ़ ज़िले के गणाई गंगोली के छोटे से गांव रैंतोली
में अपने बचपन की सर्दियां याद करते हुए ’दावानल’ नामक प्रसिद्ध उपन्यास के रचयिता
और ’हिन्दुस्तान’ अख़बार के उत्तर प्रदेश संस्करणों के सम्पादक श्री नवीन जोशी ने एक
दिलचस्प किस्सा सुनाया.

जाड़ों में पहाड़ों में सदा ही अच्छी ख़ासी ठण्ड पड़ती
है. स्कूलों की छुट्टियां होती हैं और बच्चे खेलने बाहर भी नहीं जा सकते. ऐसे मौसम
में नहाने की बात सोचने से बड़ों की भी घिग्घी बंध जाती है, बच्चों की तो बात ही
क्या. तो बच्चे कई कई दिनों तक नहाने से बचे रहते हैं.

ऐसा ही नवीन दा के
बचपन में भी होता था. कई दिनों तक न नहाए बाखली के सारे आठ-दस बच्चों को एकबट्याया
जाता था और ख़ूब सारा पानी गर्म करने के बाद सामूहिक जबरिया स्नान से उन्हें साफ़
बनाया जाता था. यह काम किसी भी बच्चे की मां या बड़ी बहन या मौसी आदि करते
थे.

बाहर धूप आमतौर पर गा़यब रहा करती थी और आसमान में बादल लगे होते थे. इन
सद्यःस्नात बच्चों को और भी ठण्ड लगती थी. इस के लिए उन्होंने एक शानदार तकनीक ईजाद
की थी. वे उछलते हुए मिलकर एक कोरस गाया करते थे जो सर्दी भगाने का गारन्टीड तरीका
हुआ करता था:

"घमुलि दीदी यथ-यथ आ
बादल भीना पर-पर जा
"


धूप माने घाम को दीदी कह कर अपने पास आने का अग्रह किया जाता था जबकि
बादल को भिना यानी जीजा के नाम से सम्बोधित कर दूर दूर रहने को कहा जाता
था.

NAIEM..

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